हरियाणा दिवस पर विशेष
पंडित तारादत्त विलक्षण : जिनके गीतों में होते हैं हरियाणवी संस्कृति के दर्शन
हरियाणा दिवस पर विशेष
पंडित तारादत्त विलक्षण : जिनके गीतों में होते हैं हरियाणवी संस्कृति के दर्शन
हरि की धरती हरियाणा की पावन माटी का प्रभाव है कि यहां के खेत- खलिहान, किसान, पहलवान, परिधान, देशी खानपान एवं कला - संस्कृति की गूंज न केवल भारत बल्कि दुनिया भर में गुंजायमान है। गीता ज्ञान का संदेश विश्व भर को देने वाली, कई लड़ाइयों की साक्षी रही, हरियाणा की वीर भूमि की समृद्ध सांस्कृतिक छटा का वर्णन लोकगीतों, रागनियों व हरियाणवी साहित्य में बखूबी किया गया है। हरियाणा और हरियाणवी संस्कृति के प्रति आजीवन समर्पित रहने वाले, जिनके कर्ण प्रिय गीतों में हरियाणा का आध्यात्मिक - भौगोलिक महत्व, जन- जीवन, शिक्षा - समाज, रीति- रिवाज, मजदूर - किसान, जीवटता, वीरता, खान- पान, वेशभूषा आदि के दर्शन होते हैं, ऐसी प्रतिभा का नाम है पंडित तारा दत्त विलक्षण 'हरियाणवी'।
1917 में जींद जिले के ग्राम अलेवा में जन्मे पंडित तारा दत्त विलक्षण को साहित्य सृजन की प्रेरणा अपने पिता से मिली। उनके पिता पंडित माईराम अपने समय के श्रेष्ठ कवि रहे जिनको जनता ने 'कविरत्न' की उपाधि से अलंकृत किया। विद्यालय स्तर से ही पंडित तारा दत्त को काव्य लेखन का शौक रहा। उन्होंने हिंदी में अनेक रचनाएं लिखी परंतु उनके साहित्य सृजन में हरियाणवी प्रमुख रही। 1 नवंबर 1966 को हरियाणा की स्थापना के समय हरियाणा की प्रशस्ति में पंडित तारा दत्त विलक्षण द्वारा लिखा प्रथम गीत -'गंगा जी के प्यार मैं, सरस्वती कंठार मैं, जमुना - घागर धार मैं, म्हारा बसै देश हरियाणा सै', राष्ट्रपति जी के अभिभाषण उपरांत आकाशवाणी के सभी केंद्रों से प्रसारित हुआ। यह गीत आज भी उतना ही लोकप्रिय है तथा विविध अवसरों पर गाया जाता है। हरियाणा के राज्य गीत की घोषणा के अवसर पर भी मुख्यमंत्री द्वारा इस गीत को सुने जाने का उल्लेख किया था। उनका लिखा एक और हरियाणा प्रशस्ति गीत- 'हरियाणा संस्कृति का इतिहास देखिए, बहुधान्यक का सांस्कृतिक विकास देखिए' हरियाणा की संस्कृति के साक्षात दर्शन कराता है।
विलक्षण जी के गीतों में जननी - जन्मभूमि,राष्ट्र ,राष्ट्रीय ध्वज की वंदना, राष्ट्रीय एकता का आह्वान, शहीदों को नमन का सुंदर वर्णन किया है - 'मेरे देश की माटी मन्नै तेरे पै अभिमान सै, जननी जन्मभूमि तू स्वर्ग तै घणी महान सै'। 'हम सदा एक थे- ईब एक सां - एक रहांगे'। 'तमनै मेरा प्रणाम शहीदों तमनै मेरा प्रणाम'। 'सब तै ऊंचा सब तै सुंदर झंडा श्रेष्ठ म्हारा सै, जणे- जणे की आंख का उज्ज्वल भाग का तारा सै'। उनके यह गीत कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र, महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक की स्नातक तृतीय वर्ष हिंदी अनिवार्य की पाठ्य पुस्तक 'हरियाणवी लोकधारा' में शामिल किए गए हैं।
पंडित तारा दत्त विलक्षण ने ठेठ हरियाणवी धुनों के साथ-साथ अपनी ही बनाई हुई नई लोकप्रिय धुनों पर भी कितने ही गीतों की रचना की है जो हरियाणवी, हिंदी, उर्दू भाषा की रचनाओं के माध्यम से संग्रहित है। उनके गीत ' सजना में जांगी मेले मैं ', 'भाभी री म्हारे बैल तगड़े', 'लीला- धोला बुलद जोड़ कै' , 'मेरी कोथली पहुंचाइये रे माँ के जाए भाई ', सीली चालै बाल मार मत पिचकारी मैं ठिर ज्यांगी', 'कर सोला सिंगार मैं जांगी सासु कै' आदि में हरियाणवी रीति- रिवाज, श्रृंगार, भाई- बहन, देवर- भाभी के रिश्तों की मिठास, त्योहारों की उमंग, गाय- बैल की सुंदरता व उपयोगिता सहित हरियाणवी संस्कृति के विविध पहलुओं को शब्दों में पिरोकर प्रस्तुत किया है।
उनके गीत हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा हरियाणवी काव्य संकलन में प्रकाशित हुए हैं।
लोक संपर्क विभाग में नाटक निरीक्षक के रूप में उन्होंने अनेक सामाजिक, सांस्कृतिक नाटकों की रचना की। उनका सर्वप्रथम प्रकाशित नाटक 'ग्राम सुधार' देश का सर्वप्रथम हरियाणवी नाटक होने का कीर्तिमान लिए हुए है। नाटक 'आजाद भारत' तथा ' आजादी और कोड बिल' नामक दो संगीत रूपक भी उन्होंने प्रकाशित करवाए थे। उनके नाटक 'राम- राज' , 'पगड़ी की लाज' और 'ग्यारहवीं गिणती' लोक संपर्क विभाग द्वारा प्रकाशित हुए। 'ग्यारहवीं गिणती' हरियाणवी नाटक पर विलक्षण जी को भारत के राष्ट्रपति द्वारा रजत पदक से सम्मानित किया गया। यह किसी भी हरियाणवी साहित्यकार के लिए सर्वप्रथम सुअवसर था और एक नया कीर्तिमान भी। 'घरवाली' तथा 'परिवर्तन' नाटक भी उन्होंने प्रकाशित करवाए इनमें समाज के विभिन्न रूपों का लेखा-जोखा प्रस्तुत किया गया है। उनके नाटक 'जहर की घूंट', 'नई रोशनी', 'धरती क्यों हिलती है' (राखी), 'माटी और सोना', 'सीधा रास्ता', 'जितनी लंबी चादर', 'मेरा भत्ता' अप्रकाशित परंतु सफलतापूर्वक मंचित हो चुके हैं।
पंडित तारा दत्त विलक्षण ने कई हरियाणवी सांग भी लिखें। शाही लकड़हारा व जानी चोर को नई मंचन शैली में प्रदर्शित कराने हेतु सेवानिवृत्ति के बाद भी विभाग ने उन्हें हरियाणा नाट्य कला का विशेष सलाहकार मनोनीत किया था। इन सांगों का प्रदर्शन हरियाणा के सभी नगरों, संस्थानों, चंडीगढ़ के परेड ग्राउंड, हरियाणा राजभवन तथा देश की राजधानी दिल्ली के ताल कटोरा तक में सफलतापूर्वक संपन्न हुआ। उनके लिखे हरियाणवी गीत हरियाणवी फिल्म - बेटी जाट की, नौटंकी और फूल सिंह, भंवर चमेली और छबीली में प्रदर्शित होकर लोकप्रिय हुए। हरियाणवी हास्य रस के शिक्षाप्रद उदाहरण तथा लोक प्रचलित वार्ताओं के 'हरियाणवी ताऊ' नामक संकलन के साथ ही उनका हरियाणवी शब्दों का संग्रह 'हरियाणवी शब्द सरिता' के नाम से सुरक्षित रखा हुआ है।
विलक्षण जी का अनुपम कार्य महर्षि वेदव्यास द्वारा रचित विश्व प्रसिद्ध श्रीमद् भगवद गीता के संस्कृत श्लोकों का हरियाणवी भाषा में पद्य अनुवाद कर सरल, रोचक बनाकर प्रस्तुत करना है। 'हरियाणवी भगवद गीता' उनके द्वारा हरियाणवी भाषा में किया गया यह सर्वप्रथम प्रयास है जो अपने आप में कीर्तिमान है। यह हरियाणवी अनुवाद सरल, सहज, स्पष्ट व रसात्मक बन गया -
'हे अर्जुन! जब - जब मैं देखूं होती धर्म की हाणी, उस्से बखत धर्म रक्षा हित जनम लेता बण प्राणी'।
उन्होंने हरियाणवी भागवत गीता के आरम्भ में गायत्री मंत्र का भी हरियाणवी अनुवाद किया है। विवाह में वर- वधु द्वारा दिए जाने वाले वचनों को भी उन्होंने सुंदर हरियाणवी गीत के माध्यम से प्रस्तुत किया है।
पंडित विलक्षण न केवल श्रेष्ठ कवि अपितु अच्छे लेखक, संपादक, निर्देशक, गीतकार, संग्रह कर्ता व सफल अनुवादक की भूमिका में हरियाणा व हरियाणवी संस्कृति के संवाहक बनकर साहित्य सेवा में आजीवन रत रहे। साहित्य की कोई भी विधा उनकी लेखनी से अछूती नहीं रही। उनके साहित्य पर कृष्ण कुमार ने एम फिल व कुलदीप शर्मा ने पी एच डी की है। 17 सितंबर 1998 को यह विलक्षण प्रतिभा संसार से विदा हुई परंतु निधन के बाद उनकी एक दर्जन से भी अधिक पुस्तकों जितनी महत्वपूर्ण सामग्री अप्रकाशित रखी है जो हरियाणवी संस्कृति एवं साहित्य की अनमोल विरासत है। सरकार को इसे प्रकाशित करवाकर हरियाणवी संस्कृति की इस अमूल्य धरोहर को जन-जन तक पहुंचाने का प्रयास करना चाहिए।
-अशोक वशिष्ठ, हिंदी प्रवक्ता
राजकीय मॉडल संस्कृति वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय नलवा, हिसार।

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